Wednesday, March 12, 2025
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हर ओर गूंज उठा वैदिक मंत्र ”सर्व मंगल मांगल्ये…”

बेगूसराय : कलश स्थापना और शैलपुत्री की अर्चना के साथ ही शक्ति स्वरूपा भगवती की आराधना का नौ दिवसीय अनुष्ठान शारदीय नवरात्र आज से शुरू हो गया। नौ दिनों तक श्रद्धालु अपने घरों और मंदिरों में दुर्गा सप्तशती, सहस्त्र नाम, रामचरित मानस, सुंदरकांड, कील, कवच, अर्गला आदि का पाठ करेंगे।

बेगूसराय के तीन सौ से अधिक मंदिरों और हजारों घरों में कलश स्थापना कर दुर्गा पाठ शुरू किया गया। इस अवसर पर कहीं दुर्गा सप्तशती का पाठ हो रहा तो कहीं रामायण पाठ की शुरूआत भी की गई। गांव सेे लेकर शहर तक का हर गली, मोहल्ला ”या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता” सहित मां दुर्गा के वैदिक मंत्रों से गुंजायमान हो उठा है।

कलश स्थापना के साथ ही मां भगवती के प्रथम स्वरूप शांति और उत्साह देकर भय का नाश करने वाली मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की गई। पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता शैलपुत्री का जन्म शैल-पत्थर से हुआ था, इसलिए मान्यता है कि नवरात्रि के दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से जीवन में स्थिरता आती है।

पंडित आशुतोष झा ने बताया कि कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में महेश तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती है। इसलिए पूजन के दौरान कलश को देवी-देवता की शक्ति, तीर्थस्थान, मंगल कामना, सुख समृद्धि आदि का प्रतीक मानकर स्थापित किया गया है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री की आराधना करने वाले पर्वत के समान अडिग रहते हैं, उन्हें कोई हिला नहीं सकता है।

मन में भी भगवान के लिए अडिग विश्वास हो तो मनुष्य किसी भी लक्ष्य तक पहुंच सकता है, इसलिए ही नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री मां की पूजा की जाती है। दूसरी ओर लोग सोशल मीडिया के माध्यम से नवरात्रि की बधाई दे रहे हैं। केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने सनातनी देशभक्तों को बधाई देते हुए देश, समाज और परिवार के मंगल की कामना किया है।

इधर, नवरात्रि एवं कलश स्थापना को लेकर अहले सुबह से ही सभी गंगा घाटों पर भीड़ उमड़ पड़ी। झमटिया गंगा घाट से लेकर सिमरिया, सिहमा, चकोर होते हुए साहिबपुर कमाल तक के घाट पर लाखों श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान किया तथा जल एवं गंगा की मिट्टी को लेकर अपने घर की ओर प्रस्थान किया। वही गायत्री शक्तिपीठ में सामूहिक साधना शुरू किया गया है।

नवरात्र के दूसरे दिन सोमवार को द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा की जाएगी, देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप ज्योर्तिमय है। यह मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरी शक्ति हैं, तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा इनके अन्य नाम हैं। ”या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:” का जप करते हुए इनकी पूजा करने से सभी काम पूरे होते हैं, रुकावटें दूर हो जाती है।

देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन की कठिन समय मे भी मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है। देवी अपने साधकों की मलिनता, दुर्गणों और दोषों को खत्म करती है तथा देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि तथा विजय की प्राप्ति होती है। मां ब्रह्मचारिणी का स्वरुप भक्ति, तपस्या, ज्ञान संयम और दृढ़ संकल्पी होने की प्रेरणा देता है।

अपनी अतृप्त इच्छाओं पर नियंत्रण करने की शक्ति मिलती है। ब्रह्मचारिणी की पूजा से इच्छित घर और वर की प्राप्ति हो सकती है, जीवन के बड़े लक्ष्यों, तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है। दूसरे दिन भगवती को चीनी का भोग लगाना चाहिए। ब्राह्मण को दान में भी चीनी ही देनी चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है। इनकी उपासना करने से मनुष्य में तप, त्याग और सदाचार की वृद्धि होती है।

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