किशनगंज : शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को होता है। चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरुप मां कूष्मांडा की पूजा करते हैं। वह चौथी नवदुर्गा कहलाती हैं। 8 भुजाओं वाली मां कूष्मांडा शेर पर सवार होती हैं।
उनके हाथों में गदा, चक्र, धनुष, बाण, माला, अमृत कलश, कमल पुष्प होते हैं। ये देवी साहस और अद्भुत शक्ति का प्रतीक हैं। उनके अंदर इस पूरी सृष्टि के सृजन की क्षमता है। मां दुर्गा के साधक पंडित मनोज मिश्रा के अनुसार, कूष्मांडा का अर्थ कुम्हड़ा होता है। इसमें अनेकों बीज होते हैं, जिसमें एक नए पौधे के सृजन की शक्ति होती है।
देवी कूष्मांडा भी सृजन की देवी हैं। रविवार को पंडित मनोज मिश्रा ने बताया कि दृक पंचांग के आधार पर अश्विन शुक्ल चतुर्थी तिथि 6 अक्टूबर को सुबह 7 बजकर 44 मिनट से प्रारंभ हो रही है और यह 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 46 बजे तक है। उन्होंने बताया कि नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा को दही, मालपुआ और हलवा का भोग लगाना अच्छा होता है। इसके अलावा देवी को सफेद कुम्हड़े की बलि भी देनी की परंपरा है।
व्रत वाले दिन आपको ब्रह्म मुहूर्त में दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर मां कूष्मांडा की पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले मां कूष्मांडा का गंगाजल से अभिषेक करें। फिर उनको लाल गुड़हल, गुलाब आदि का फूल चढ़ाएं। उनको अक्षत्, सिंदूर, फल, धूप, दीप, गंध, नैवेद्य, श्रृंगार सामग्री आदि चढ़ाएं। इस दौरान मंत्र का उच्चारण करें। फिर मां कूष्मांडा को दही, हलवा और मालपुआ का भोग लगाएं। इसके बाद दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। पूजा का समापन मां दुर्गा और देवी कूष्मांडा की आरती से करें।