प्रवीण सिंह, चतरा | 25 जुलाई- चतरा जिले के प्रतापपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत भूगड़ा गांव के बैगा टोला में सड़क के अभाव और समय पर इलाज न मिलने के कारण एक गर्भवती आदिवासी महिला की दर्दनाक मौत हो गई। मृतका की पहचान गुड़िया देवी के रूप में हुई है। यह घटना एक बार फिर आदिवासी क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं की बदहाली और सरकारी दावों की हकीकत को उजागर करती है।
समय पर इलाज नहीं, सड़क नदारद
जानकारी के अनुसार, गुड़िया देवी को प्रसव पीड़ा होने पर उनके पति राजेश ने बलवादोहर गांव के एक कथित निजी क्लीनिक से दवा लाकर दी। दवा लेने के बाद महिला की हालत बिगड़ने लगी। सूचना मिलने पर प्रतापपुर चिकित्सा प्रभारी डॉ. संजीव कुमार ने एंबुलेंस भेजी, लेकिन गांव तक सड़क नहीं होने के कारण एंबुलेंस गांव से 500 मीटर पहले ही रुक गई।
परिजन महिला को खाट पर लादकर एंबुलेंस तक लाने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन रास्ते में ही गुड़िया देवी ने दम तोड़ दिया। इस दौरान किसी भी प्रकार की त्वरित चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध नहीं हो पाई।
इलाज में देरी या गलत दवा – मौत का कारण अब भी संदेह के घेरे में
चिकित्सा प्रभारी संजीव कुमार ने बताया कि यह मामला प्रारंभिक तौर पर संदेहास्पद प्रतीत होता है। उन्होंने स्नेक बाइट (सांप काटने) की आशंका भी जताई है, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही स्पष्ट रूप से मौत का कारण सामने आएगा।
पोस्टमार्टम को लेकर परिजनों की अनिच्छा, मुआवजे पर भी संदेह
मृतका के परिजन पोस्टमार्टम कराने से पहले अनिच्छुक थे। उनका कहना था कि सरकार की ओर से जो मुआवजा राशि मिलेगी, वह बिचौलियों द्वारा हड़प ली जाएगी। इस पर प्रतापपुर के अंचलाधिकारी (सीओ) ने उन्हें समझाते हुए आपदा प्रबंधन राहत कोष से सहायता दिलाने का आश्वासन दिया।
सीओ और प्रशासन के समझाने के बाद, देर शाम करीब 9 बजे गुड़िया देवी का शव पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल लाया गया, जहां उपायुक्त के निर्देश पर रात में ही पोस्टमार्टम कराया गया।
गंभीर सवालों के घेरे में सरकार की योजनाएं
यह घटना न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी सच्चाई को उजागर करती है, बल्कि आदिवासी क्षेत्रों में सड़क और चिकित्सा जैसी बुनियादी जरूरतों की उपेक्षा को भी उजागर करती है। क्या यह मौत इलाज में देरी की वजह से हुई? या निजी क्लीनिक द्वारा दी गई दवा घातक थी? क्या सड़क होती तो जान बच सकती थी?
इन सवालों के जवाब प्रशासनिक जांच के बाद ही सामने आ सकेंगे, लेकिन फिलहाल एक और आदिवासी महिला की मौत सरकारी दावों पर कड़ा प्रश्नचिह्न जरूर लगा चुकी है।